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Monday, December 31, 2018

गांव

गांव सबको स्वीकार करता है
और सबके लिए
उसके पास है काम,

शहर से दूर गांव में
मोटरसाइकल पर बकरी
लादने का काम हो
या कउवा भगाने की युक्ति
सभी को काम माना जाता है,

छोटे-छोटे मड़ाई के बीच
घर के छप्पर पर पसरे पेड़
में फल आने की प्रतीक्षा
के काम को घुरऊ काका के
घर ने तीन पीढ़ी से साधा है,
उनसे मिलने पर अहसास हुआ कि
कैसे मुहावरे टूटते हैं जैसे
कोई शब्द उनके न जानने पर
'ये किस चिड़िया का नाम है'
के बजाए 'यह किस फल का नाम है
इसमें बदल जाता है,

मक्खियां गांव में बेखौफ
मुर्गों के पीठ पर लदी
घूम रही हैं
और बच्चे कुत्तों की पूंछ
मां का आँचल समझ कर
पकड़े सो रहें हैं
घर की औरतें खेतों में काम करती
निश्चिन्त हैं उन्हें कुत्तों के
हवाले कर,

मैं शहर से सौ किलोमीटर दूर
एक गांव में
अपने बच्चे को
याद कर रहा हूँ
और मुहल्ले के पड़ोसी की
खतरनाक आंखों के लगातार
निहारने को
अपने से जुदा नहीं कर पा
रहा हूँ।
(अप्रमेय)

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