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Monday, April 23, 2018

आदमी होने का अर्थ

धूप निकल आई है
और कौवे अपनी चोच से
डाल पर बैठे अंगड़ाई ले रहे हैं
मेरी नजर अटक गई 
कुछ पक्के कुछ कच्चे इमलियों के बीच
मन खट्टा हो गया
पर इस खट्टे होने को
मुहावरे में मत समझना
आदमी ने अपनी सुविधा के लिए गढ़ीं हैं
सूक्तियां,चुटकुले, और न जाने क्या-क्या,
इमलियां लटकी हुई हैं
और कोई भी तोता नजर नहीं आ रहा
तोते पता नहीं इमली खाते हैं या नहीं
मैं नहीं कह सकता,
हरी पत्तियों के ऊपर से पड़ रही धूप
पत्तों के पास कैसा अंधेरा रच रहीं हैं
काले कौवे चुप-चाप
धीरे-धीरे हिल रहे हैं
कुछ-कुछ पीले पड़ गये पत्ते अपने आप
नीचे झर जा रहे हैं
मैंने उठाई एक लकड़ी
कि तोड़ू इमली पर अचानक
रोक लिए अपने हाथ
सोचता हूँ और खोजता हूँ
कि क्यों रोके मैंने अपने हाथ
कुछ जवाब नहीं पाता भीतर
सत्य कहूँ कभी-कभी मैं
अपने आप को कहीं नहीं पाता
आदमी होने का क्या अर्थ है
इमली को देखने भर की तरह
नहीं जान पाता ।
(अप्रमेय)

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