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Monday, April 23, 2018

जंगल

दुख जंगलों की तरह
बेपनाह फैल रहे हैं
कभी कोई फूल उग आता है
उन सब के बीच,

दुख को खबर नहीं सुख की
और सुख को कोई मतलब नहीं दुख से
पत्तों का इतिहास
न जंगल जानते हैं न फूल,


उन्हें वंचित रहना पड़ा है
हमेशा से सुख दुख से दूर
सदियों से वे झरते रहे हैं
खाद-मिट्टी बनने के लिए
जंगल के अंधेरों और
सुगंध के चमक के बीच,


जड़े उन्हें सम्हालती रही और
एक कारोबार की तरह
धकेलती रहीं हैं
हम सब के बीच।
(अप्रमेय)

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