ये कहना मुझे अच्छा नहीं लगा कि
झर जाएंगे पत्ते इसलिए
कह रहा हूँ
झर रहें हैं पत्ते
इस बार भी वसंत के,
इस बार, इस बार ऐसा कहना
हमेशा से कितना
आशान्वित करता रहा है मुझे
ये आज पलाश के पेड़ के नीचे
धूप में खड़े हो कर उसके फूल को
देखते हुए अनुभव हुआ,
इस बार ऐसा कहना
इस जीवन का महा मंत्र लगा
जो सुबह से शाम तक
आदि से अनंत तक
बराबर बज रहा है
दिन में रौशनी सा
रात में अँधेरा सा
बादलों में चाँद सा
या फिर तारों सा
घटाओं सा
झरनों सा
आदमी में आदमी सा
(अप्रमेय)
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