सोचता हूँ बचपन में
मुझसे नहीं लिखवाई गई स्वरचित
कोई कविता
सो आज लिख रहा हूँ
कविता,
सोचता हूँ मुझसे अगर
किसी ने भी ठीक से
कर लिया होता प्यार
तो आज शायद सभी से कर रहा होता
प्यार,
सोचता हूँ अच्छा ही हुआ
जो स्कूल की कक्षाओं में
ईश्वर पर मुझसे नहीं
पूछा गया कोई
सवाल।
(अप्रमेय)
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