पकड़ डीहा
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कुछ नाम स्मृतियों में
ऐसे टंगे हैं जैसे
सुबह टंगा रहता है सूरज
शाम टंके रहते हैं तारे,
कुछ आकृतियां पीछे से
झांकती हैं ऐसे जैसे कोई दुल्हन
निहारती हो राह अपने प्रियतम की,
एक धुन भैंस की पीठ पर सवार होकर
बांसुरी पर निकालता है
कोई सांवला लड़का
उसका नाम नहीं पता मुझे
मैं आंखे बंद कर के
निहारता हूँ मानचित्र
किसी उपन्यास के कवर पृष्ठ की तरह
सड़क के किनारे
एक दीवार पर लिखा देखता हूं
पकड़ डीहा।
(अप्रमेय)
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