तुम आओगे नहीं
ये मुझे मालूम है
एक झबराये पेड़ को देखते हुए
मुझे ऐसा अनुभव हुआ
तभी जाने कहाँ से एक तितली
पत्तों के बीच से निकल पड़ी
और उड़ती हुई आंक गई
मेरे भीतर पीले रंग की स्मृति
मैंने चुप चाप शरण ली उस पेड़ की
दोपहरी की पीली धूप
पीली छांव में बदल गई
पीला होता मेरा चेहरा
लोगों के लिए दुख का कारण बना
मैंने बुद्ध को याद किया
शिव को जपा
और उन सभी के साथ
पीले पड़ते सपनों को
सपनों में ही साकार किया।
(अप्रमेय)
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