एक आह जो उठी
बस इतना देखने भर से
कि इस महामारी में वह
रिक्शा चला रहा है,
सदियों से बैठे सर्प ने फिर
उठाया अपना फन
और डस कर फैला देना चाहा
व्याकरण का जहर,
मैं चुप हूँ और कुछ भी नहीं लिखकर
बिना किसी लीपा-पोती के
कवियों से क्षमा मांग रहा हूं
और कविता लिखने से
फिलहाल इनकार कर रहा हूँ।
(अप्रमेय)
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