Powered By Blogger

Thursday, July 16, 2020

एक आह

एक आह जो उठी 
बस इतना देखने भर से
कि इस महामारी में वह
रिक्शा चला रहा है,

सदियों से बैठे सर्प ने फिर
उठाया अपना फन
और डस कर फैला देना चाहा
व्याकरण का जहर,  

मैं चुप हूँ और कुछ भी नहीं लिखकर
बिना किसी लीपा-पोती के 
कवियों से क्षमा मांग रहा हूं
और कविता लिखने से 
फिलहाल इनकार कर रहा हूँ।
(अप्रमेय)

No comments:

Post a Comment