हलाकि यह मेरी
एक स्पष्ट पर
विनम्र पाती है ,
उनके लिए
जो उस अनंत विस्तार
की यात्रा में सहयात्री हैं ,
इस कविता को
तुम बना सकते हो
या इसे मिटा कर
नए शब्दों को
जोड़ सकते हो
नए अर्थ लिए
अपने सदृश्य
अपनी यात्रा के
अपने सुख लिए,
तुम्हारा होना ही
तुम्हारा टिकट है
इस यात्रा के लिए
इस गाड़ी में न सही
उस गाड़ी में
तुम्हे यात्रा करनी ही होगी
(अप्रमेय )
No comments:
Post a Comment