Powered By Blogger

Sunday, August 18, 2013

तुम्हारा टिकट


इसे कविता ही समझो 
हलाकि यह मेरी 
एक स्पष्ट पर 
विनम्र पाती है ,
उनके लिए 
जो उस अनंत विस्तार 
की यात्रा में सहयात्री हैं ,
इस कविता को 
तुम बना सकते हो 
या इसे मिटा कर
नए शब्दों को
जोड़ सकते हो
नए अर्थ लिए
अपने सदृश्य
अपनी यात्रा के
अपने सुख लिए,
तुम्हारा होना ही
तुम्हारा टिकट है
इस यात्रा के लिए
इस गाड़ी में न सही
उस गाड़ी में
तुम्हे यात्रा करनी ही होगी
(अप्रमेय )

No comments:

Post a Comment