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Wednesday, September 11, 2013

राग यमन :


पंछियों का समूह 
जो उड़ चला था सुबह 
वह गोधरी बेला  में 
अपनी चोंच में दाना दबाये 
लौट रहे हैं 
अपने-अपने घोंसलों मे 
उन्हें तय करना है 
बस थोड़ा ही रास्ता और 
उन्हें पता है 
अपने ठीये पर 
पहुँच जाने का सुख। 
उनके ह्रदय में 
आच्छादित है दिन भर की हरियाली 
खेतो के बीच से 
गुजरती बहती-झूमती नदी 
और इन सब के अलावा 
जो बच गए आज फिर 
शरारती बच्चो के ढेलों से 
बहेलियों के जाल से 
चिमनी की लपटों से,
वे पहुँच चुके है अब 
अपने-अपने घोंसलों मे 
उन्हों ने छोड़ दिया है 
ढीला अपने पंख 
अपने घोंसले के अन्दर 
अपनी आवाज को 
पूरी ताकत के साथ 
दूसरे पेड़ के घोंसले तक पहुंचा कर 
चुप चाप रात को निहारते सो जायेंगे । 
(अप्रमेय )

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