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Friday, October 11, 2013

चिड़िया

तुम दृश्य हुए 
सुबह 
अपनी आवाज के पास 
मेरे ह्रदय के बाहर
मंगल गान करते- चहचहाते
फुदक ही आये
खिड़की से
पर्दों को हटाते अन्दर
ऐसे में
तुम्हारे साथ
हो लेने चाहती है आत्मा
यहाँ भी और वहां भी
निकल जाने के लिये
रात भर डूबती हुई
इस जल-लीला से ,
स्मृति शेष
बची ही है कहीं
किसी संघर्ष से विचलित
अतिरेक एकांत में,
धैर्य स्वांस लेता है
फुदकने की ताकत
बटोरते हुए।
उड़ना ही है
उड़ना पड़ेगा ही
तुम अपनी कहानी न लिखो
फिर भी
अपनी उड़ान में
तुम लिख ही जाओगे
अपनी कहानी।
(अप्रमेय)



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