ठेले पर चाय पकाता
चाय बेचता आदमी
आदमी-औरत के भेद को
लात मार कर
चाय पकाता आदमी'
पतुरियों की तरह
ग्राहकों की आव-भगत
करता-बुलाता
चाय बेचता आदमी
चाय पकाते आदमी की
मूछे कभी न मिलेंगी
सिपाही की तरह खड़ी-तनी
अपनी मर्दांगनी को उबालता
कप में ढाल कर पिला देता
चाय बेचता आदमी
पतीले को घिसते-माजते
अपनी शर्म को ट्रे में सजाकर
ग्राहकों के सामने
ले जाता है
चाय बेचता आदमी
हर रात अपनी इज्जत को
फुटपाथ पर लुटाकर
गालियों से थैला भर-भर
अपने बीवी-बच्चो के सामने
उसे परोस देता
रात को घर लौट कर आया हुआ
चाय बेच कर आदमी।
(अप्रमेय-दिल्ली विश्वविद्यालय के पास )
चाय बेचता आदमी
आदमी-औरत के भेद को
लात मार कर
चाय पकाता आदमी'
पतुरियों की तरह
ग्राहकों की आव-भगत
करता-बुलाता
चाय बेचता आदमी
चाय पकाते आदमी की
मूछे कभी न मिलेंगी
सिपाही की तरह खड़ी-तनी
अपनी मर्दांगनी को उबालता
कप में ढाल कर पिला देता
चाय बेचता आदमी
पतीले को घिसते-माजते
अपनी शर्म को ट्रे में सजाकर
ग्राहकों के सामने
ले जाता है
चाय बेचता आदमी
हर रात अपनी इज्जत को
फुटपाथ पर लुटाकर
गालियों से थैला भर-भर
अपने बीवी-बच्चो के सामने
उसे परोस देता
रात को घर लौट कर आया हुआ
चाय बेच कर आदमी।
(अप्रमेय-दिल्ली विश्वविद्यालय के पास )
No comments:
Post a Comment