थोड़ी-थोड़ी बटती
ही चली गयी जिंदगी
रिक्शा खोजने के साथ
बटुए से पैसा निकलने के साथ
उतरते हुए गाड़ी से
बच कर रास्ते पार करने के साथ,
थोड़ी-थोड़ी बटती
ही चली गयी जिंदगी
मोल-भाव करते
आलू-प्याज के साथ
किनारे दूकान पर सजी
गरम-गरम-जलेबी के साथ,
बटती ही चली गयी जिंदगी
सुबह से शाम तक
उठने के साथ
बच्चों की गेंद खोजने के साथ
ट्रेन की टिकट खरीदते
काउंटर के साथ
गुम सी हुई कोई कविता
आकाश में निहारने के साथ
जी हाँ
बटती ही चली गयी जिंदगी
अपने को बटते हुए
देखने के साथ।
(अप्रमेय)
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