कितनी अजीब है यह जिंदगी
सबको पकड़ा ही देती है
हाथो में कोई न कोई झुनझुना।
गवैये को दे देती है
एक बचा हुआ तान
रोज रगड़ने के लिए।
मास्टर को दे देती है एक पाठ
जो बची रह जाती है
क्लास ख़त्म होने के बाद।
जेब कतरे के दिमाग में
बची रह जाती है
भीड़ से निकलती सेठ की मोटी जेब।
भिखारी का हमेशा
बचा रह जाता है
सिक्को से कटोरा।
बच्चे को उढाने के बाद भी
बचा ही रह जाता हैं
माँ का आँचल।
बचा ही रह जाता है
प्रेमी-प्रेमिकाओं का संवाद।
कवियों की
बची ही रह जाती है उत्कंठा।
मैं पूछता हूँ आप सब से
ये झुनझुना है या कोई खिलौना ?
(अप्रमेय)
सबको पकड़ा ही देती है
हाथो में कोई न कोई झुनझुना।
गवैये को दे देती है
एक बचा हुआ तान
रोज रगड़ने के लिए।
मास्टर को दे देती है एक पाठ
जो बची रह जाती है
क्लास ख़त्म होने के बाद।
जेब कतरे के दिमाग में
बची रह जाती है
भीड़ से निकलती सेठ की मोटी जेब।
भिखारी का हमेशा
बचा रह जाता है
सिक्को से कटोरा।
बच्चे को उढाने के बाद भी
बचा ही रह जाता हैं
माँ का आँचल।
बचा ही रह जाता है
प्रेमी-प्रेमिकाओं का संवाद।
कवियों की
बची ही रह जाती है उत्कंठा।
मैं पूछता हूँ आप सब से
ये झुनझुना है या कोई खिलौना ?
(अप्रमेय)
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