यह जो हाथ पकड़ा है उसने आप का
रकीब बन गया हजारों दिले कुर्बान का
यकायक बुलंदियों पर दीप जब जल पड़े
परवानों के भीड़ में वह गुम गया चुप-चाप सा।
शमा जली है जो क्या फिर वह बुझ जायेगी
तमाशा जिंदगी है ख़ामोशी फिर सबब बन जायेगी।
जिंदगी शामो-सहर यह जमाने से जो ढलती रही
इस रीत की टीस आँखों में क्या फिर डबडबाएगी।
वह कौन चुप है दो टूक कभी कुछ कहता नहीं
यह बात इस जहाँ में क्या फिर सूली पर लटक जायेगी।
(अप्रमेय )
रकीब बन गया हजारों दिले कुर्बान का
यकायक बुलंदियों पर दीप जब जल पड़े
परवानों के भीड़ में वह गुम गया चुप-चाप सा।
शमा जली है जो क्या फिर वह बुझ जायेगी
तमाशा जिंदगी है ख़ामोशी फिर सबब बन जायेगी।
जिंदगी शामो-सहर यह जमाने से जो ढलती रही
इस रीत की टीस आँखों में क्या फिर डबडबाएगी।
वह कौन चुप है दो टूक कभी कुछ कहता नहीं
यह बात इस जहाँ में क्या फिर सूली पर लटक जायेगी।
(अप्रमेय )
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