चहारदिवारी के अंदर
आँखे बदलती रहती हैं हर-पल
बार-बार
झाँकती-चौंकती हैं
उजाले को चीरती
परछाई को देखकर
हवा बहती है तो लगता है
आ गया कोई बसंत लेकर
चहारदिवारी के अंदर ....
कान सुनना चाहता है
खटखटाने की आवाज़
मन फिर अटक गया
सिटकनी के पास
मेरे घाटी के ऊपर।
(अप्रमेय )
आँखे बदलती रहती हैं हर-पल
बार-बार
झाँकती-चौंकती हैं
उजाले को चीरती
परछाई को देखकर
हवा बहती है तो लगता है
आ गया कोई बसंत लेकर
चहारदिवारी के अंदर ....
कान सुनना चाहता है
खटखटाने की आवाज़
मन फिर अटक गया
सिटकनी के पास
मेरे घाटी के ऊपर।
(अप्रमेय )
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