प्रभु उस रात मैं चुप-चाप वहाँ से चला आया था। मुझे तो सिर्फ अपने वादे के मुताबिक वह फूल चढ़ाना था जिसे बहुत शिद्दत के बाद एक सार्वजनिक स्थल पर कविता पाठ करते हुए मैंने पाया था। सेठ का परिवार उस मंदिर में मुझे नहीं जानता था पर उस पुजारी ने भी तो मुझे घुसने नहीं दिया। उसी ने तो कहा था यह एक सिद्ध मंदिर है जो मांगोगे मिल जाएगा। अवसर तो मिल गया पर उसका प्रमाण तो मेरे पास ही रह गया। मैं चुप-चाप सो गया उस रात पर वह गुलाब का फूल सुबह तक मुरझा गया था।
(अप्रमेय)
(अप्रमेय)
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