Powered By Blogger

Friday, January 10, 2014

दे देना चाहता हूँ :

कुछ निकाल कर दे देना
चाहता हूँ तुमको
बहुत कुछ तो नहीं
पर थोड़ी नमी के साथ
अभी बची है गहराई
थोडा खुरदरा
बचा है सन्नाटा
थोडा सा दुबका लेकिन
हाँ अब भी बचा है प्यार,

कुछ निकाल कर
दे देना चाहता हूँ तुमको
बहुत कुछ तो नहीं
पर फिर भी
हताश ही सही
बची है उत्कंठा
आकाश को निहारने की
वीरान अनगढ़ जंगल की तरह
हाँ बे-हिसाब बची है तन्हाई ,

कुछ निकाल कर
दे देना चाहता हूँ तुमको
बहुत कुछ तो नहीं
थोड़ी बची है प्यास
पानी की तरह ठंडी
थोड़ी बची है याद
जीवन की तरह अनसुलझी
हा, अब भी बची है आस 
तुम्हे कुछ दे देने की। 

(अप्रमेय )

No comments:

Post a Comment