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Thursday, January 16, 2014

ओवर-कोट

उसे इसकी फिक्र नहीं
कि वह जो उसने
पहना है ओवर-कोट
उसका यहाँ
इस वीरान रस्ते पर
जो शहर के पीछे
और नाली के बगल से
गुजरता है
कोई वास्ता नहीं बना पायेगा ,
महाशय ;
उसे कौन समझाए कि
जैसे कोट में
चिपके रहते हैं जेब
वैसे ही
कोट चिपके रहते हैं
बड़े-बड़े होटलों से ,
आप के स्वांसों की
लयबद्धता का गला घोटते
अचानक चिचियाते हुए
उसके पहिये
लोकतंत्र के तारकोल पर
रुकते हैं और
हवा-सिंघासन से उतर कर
लम्बी-लम्बी फरलांग लेते
घुस जातें हैं बंगलों में ,
महाशय ;
तुम्हे ठण्ड लगी
और तुमने
पता नहीं कहाँ से
पहन लिया यह कोट
उतार दो इसे
यह जचता ही नहीं
तुम्हारे इस गंदे शरीर पर ,
आदमी के तंत्र में
बने औजारों का
गरीबों से क्या लेन-देन ,
फर्क है आदमी-आदमी में
गरीब-गरीब में नहीं ,
तुम इस देश में
उनके अस्त्र-शस्त्र
भी नहीं हो सकते
जंगल के टूटे-सूखे हुए टहनियों
तुम्हे ओवर-कोट पहनने का
कोई अधिकार नहीं
(अप्रमेय )


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