Powered By Blogger

Monday, February 10, 2014

कुत्ता :

कुता सिर्फ रखवाली ही नही 
शब्दों को भी 
सार्थक करता है,
कीचड़, जिसे हम कभी भी 
फूल की तरह नही छुपाते 
अपने किताबों के बीच  
वह कुत्ता 
अपनी उस बौखलाये शरीर को  
लोटा कर 
गर्मी से निजात पाते हुए 
कीचड़ को 
शब्द ब्रह्म के अर्थ सा 
सार्थक कर देता है ,
घर जो हम बनाते हैं 
अन्दर कोने कभी 
नितांत अकेले नहीं रह पाते
हम नही तो क्या 
हमारे सामान वहाँ काल से भी भारी 
रखे जाते हैं ,
मैं पूछता हूँ 
कुत्ता कोने में कुछ रखता तो नहीं ?
वैसे बाहर हम कुछ रख नहीं पाते
जैसे क्रोध
प्रेम  
उदासी,
ठीक थोड़े बदले अर्थ में 
कुत्ता आप की चहारदीवारी के बाहर 
कोने में अपनी मौजूदगी 
अपने अंदर समेटे 
वहाँ बैठा रहता है ,
शाम को आप बैठ जाये कहीं 
देख सकते है आप कुत्ते को टहलता 
और फिर आप जान सकते हैं 
कुत्ता उदास हो जाता है 
शाम ढलते-ढलते 
और रात होते-होते 
भयाक्रांत 
हम विदा कर चुके होते है उसे अपने से 
और रात व हमें 

पुकारता रह जाता है। 

(अप्रमेय )

No comments:

Post a Comment