बासठ साल के इस
आजाद मुल्क की मंडी में
मेरा शरीर जनाना नही
जिसे मैं बेच सकूँ
कि मैं बेच सकूँ
अपना मर्दाना शरीर
इस मुल्क में
इसके सिवा
मेरे पास कुछ है भी नही ,
कौन खरीदेगा यह
पुराना शरीर
जिसका उपभोग
इस परम्परित समाज ने
पहले ही मेरे आत्मा की किताब पर
लगा कर एक धर्म का लेबल
बांच लिया है ,
बोलो कहाँ बेचू
इस मुल्क में यह घिसी हुई किताब,
इस दर्द से अभी-अभी
जो उभर आया हैं यह गीत
इसकी कहाँ करू नुमाईश
कि बिक सके यह गीत
कि सड़को पर अब वो कहते हैं
बिकते नहीं ऐसे कोई गीत,
कि गीत हो मर्दानगी के
जिससे जल सके मशाल
कि गीत हो दीवानगी के
जिससे मिट सके दिलों के मलाल
कौन खरीदे मेरे यह गीत
जो पहले ही गा दिए गए
कि इस मुल्क की मंडी में
कहा जाए यह
आजाद तकदीर।
(अप्रमेय )
आजाद मुल्क की मंडी में
मेरा शरीर जनाना नही
जिसे मैं बेच सकूँ
कि मैं बेच सकूँ
अपना मर्दाना शरीर
इस मुल्क में
इसके सिवा
मेरे पास कुछ है भी नही ,
कौन खरीदेगा यह
पुराना शरीर
जिसका उपभोग
इस परम्परित समाज ने
पहले ही मेरे आत्मा की किताब पर
लगा कर एक धर्म का लेबल
बांच लिया है ,
बोलो कहाँ बेचू
इस मुल्क में यह घिसी हुई किताब,
इस दर्द से अभी-अभी
जो उभर आया हैं यह गीत
इसकी कहाँ करू नुमाईश
कि बिक सके यह गीत
कि सड़को पर अब वो कहते हैं
बिकते नहीं ऐसे कोई गीत,
कि गीत हो मर्दानगी के
जिससे जल सके मशाल
कि गीत हो दीवानगी के
जिससे मिट सके दिलों के मलाल
कौन खरीदे मेरे यह गीत
जो पहले ही गा दिए गए
कि इस मुल्क की मंडी में
कहा जाए यह
आजाद तकदीर।
(अप्रमेय )
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