याद को किस जगह उसने छुपा रखा है
उदासी के इस दिए में ख़ुशी की बाती लगा रखा है।
हम तो निकले थे चलने को उनके साथ-साथ
जिंदगी तुमने मुझे यह कहाँ बिठा रखा है ।
दर्द जो ढक चुका है अब आंच बन के सीने में
कहीं वह उड़ न जाय राख बन के आंधी में।
मत पूछ सिकंदर से उसकी हार की वजह
अपनी हार से उनकी जीत की मशाल जला रखा है।
( अप्रमेय )
उदासी के इस दिए में ख़ुशी की बाती लगा रखा है।
हम तो निकले थे चलने को उनके साथ-साथ
जिंदगी तुमने मुझे यह कहाँ बिठा रखा है ।
दर्द जो ढक चुका है अब आंच बन के सीने में
कहीं वह उड़ न जाय राख बन के आंधी में।
मत पूछ सिकंदर से उसकी हार की वजह
अपनी हार से उनकी जीत की मशाल जला रखा है।
( अप्रमेय )
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