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Thursday, February 20, 2014

याद

याद को किस जगह उसने छुपा रखा है 
उदासी के इस दिए में ख़ुशी की बाती लगा रखा है। 

हम तो निकले थे चलने को उनके साथ-साथ 
जिंदगी तुमने मुझे यह कहाँ बिठा रखा है । 

दर्द जो ढक चुका है अब आंच बन के सीने में 
कहीं वह उड़ न जाय राख बन के आंधी में। 

मत पूछ सिकंदर से उसकी हार की वजह 
अपनी हार से उनकी जीत की मशाल जला रखा है। 

( अप्रमेय  )


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