काश.…
मैं तुम्हे बिठा पाता
अपने शब्दों में
तुम्हारे होठो को
सुनहरे शब्दों में पिरोकर
गुनगुनाता उनको गीतों में ,
काश.…
मैं तुम्हे सुला पाता
अपने पन्नो में
शब्दों के देह में जो अब तक
न जाग सकी सार्थक आत्मा
उसे जगाते जेब में रख कर
घूम पाता वादियों में ,
काश.....
मैं रंग पाता
तुम्हारे गदराये हथेलिओं पर
शब्दों की मेंहदी
नहीं अभी नहीं हैं
मेरे पास
मेरे पास नहीं, किसी के पास
तुम्हारे तरह जीवित शब्द
इसलिए
आओ मन बहलाते हैं
एक गीत गातें हैं
कोई गजल सुनाते हैं
तुम्हे याद कर के
काव्य लिख-लिख कर
चलो अमर हो जाते हैं।
(अप्रमेय )
,
मैं तुम्हे बिठा पाता
अपने शब्दों में
तुम्हारे होठो को
सुनहरे शब्दों में पिरोकर
गुनगुनाता उनको गीतों में ,
काश.…
मैं तुम्हे सुला पाता
अपने पन्नो में
शब्दों के देह में जो अब तक
न जाग सकी सार्थक आत्मा
उसे जगाते जेब में रख कर
घूम पाता वादियों में ,
काश.....
मैं रंग पाता
तुम्हारे गदराये हथेलिओं पर
शब्दों की मेंहदी
नहीं अभी नहीं हैं
मेरे पास
मेरे पास नहीं, किसी के पास
तुम्हारे तरह जीवित शब्द
इसलिए
आओ मन बहलाते हैं
एक गीत गातें हैं
कोई गजल सुनाते हैं
तुम्हे याद कर के
काव्य लिख-लिख कर
चलो अमर हो जाते हैं।
(अप्रमेय )
,
No comments:
Post a Comment