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Monday, February 3, 2014

वसंत

सुबह उठते ही भागा मैं
खुले आसमान के नीचे
रात पता चला था मुझको
आने को है वसंत ,
कुछ देर देखा बादल को
पूछा मैंने उससे सवाल
सो कर अभी उठा था
दे न पाया वह जवाब ,
मैं जगाता अभी उसे
कि गुलाब मुझसे बोल पड़ा
पड गये चक्कर में तुम भी
कविताएँ लिखने को ,
मैंने कहा वसंत में तो
सभी कवि कविता लिखते हैं
पढ़ा है मैंने वसंत में
भौरे आकर तुम्हे गीत सुनाते हैं ,
सुन जवाब मेरा
गेंदा मुझसे बोल पड़ा
गौर करो उस पेड़ पर
जो सूख गया है
झाड़ ली सब पत्तियां उसने
चुप-चाप खड़ा रह गया है
अब जाता नही कोई पास उसके
वसंत हो या ग्रीष्म ऋतु ,
लिखना ही है, लिख देना उसपर
अब क्यों खड़ा है वह वहाँ ,
बादल भी अब जग गया
मुझे देख
एक गीत गाने लगा ,
हम सब की आँखों में
अब भी बची है कुछ नमी
तुम मनाओ वसंत
हम मनाएंगे फिर कभी।

(अप्रमेय ) 

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