चक्की की लय पर
सरकता है मन का घूँघट
अंदर वहाँ खलिहान है
जहाँ उसने मन मुताबिक
चला दिया मशीन ,
वहाँ नहीं करेगा कोई मोल-भाव
वहाँ से नहीं जायेगा
बाहर उसके घर आटा,
वहाँ अंदर हाँ अंदर
उसका पति है
पर वह नहीं जो बाहर है
उसका समाज है
पर वह नहीं
जो छिटका है इधर-उधर
अंदर जिसे वह चाहती है
उसके लिए घूँघट घूँघट नहीं
एक शान है।
(अप्रमेय )
सरकता है मन का घूँघट
अंदर वहाँ खलिहान है
जहाँ उसने मन मुताबिक
चला दिया मशीन ,
वहाँ नहीं करेगा कोई मोल-भाव
वहाँ से नहीं जायेगा
बाहर उसके घर आटा,
वहाँ अंदर हाँ अंदर
उसका पति है
पर वह नहीं जो बाहर है
उसका समाज है
पर वह नहीं
जो छिटका है इधर-उधर
अंदर जिसे वह चाहती है
उसके लिए घूँघट घूँघट नहीं
एक शान है।
(अप्रमेय )
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