फरवरी की इस सुबह-सुबह
बेटे के ब्याह के सामान को
मजदूरों के साथ
दुमंजिला मकान पर चढ़ाते हुए
डबलबेड का पावा पकड़े
अदृश्य हाथों से
अपने जिम्मेदारियों के पाँव पकड़ लेना चाहता है
बूढ़ा होता बाप,
बूढ़ा होता बाप
बूढ़ा नही दिखना चाहता
बूढ़ा होना समाज में
सम्मानजनक है
पर बेटों के सामने आज भी
बूढ़ा बाप शरमाता है।
उसके जाग जाने के पहले
वह पहुंचा देना चाहता है
सारा सामन
सीढ़ियों पर चढ़ते
लड़खड़ाते हुए कदम
को वह छुपा लेना चाहता है
वह चढ़ता है धीरे-धीरे
मजदूरों के साथ
मजबूर होता हुआ
मजदूर और मजबूर बाप के
पसीने के फर्क को समझता हुआ
वह पंहुचा देना चाहता है सबसे बाद में
बहू का श्रृंगारदान
बेटे के जागने के पहले
उसे उसके कमरे में रखकर
आँखों से आंसू नही बहे पसीने को
पोछ कर छिपाने से पहले
अपने अक्स पर ख़ुशी का
पूरा भरोसा
शीशे में देख लेना चाहता है वह बाप।
( अप्रमेय )
बेटे के ब्याह के सामान को
मजदूरों के साथ
दुमंजिला मकान पर चढ़ाते हुए
डबलबेड का पावा पकड़े
अदृश्य हाथों से
अपने जिम्मेदारियों के पाँव पकड़ लेना चाहता है
बूढ़ा होता बाप,
बूढ़ा होता बाप
बूढ़ा नही दिखना चाहता
बूढ़ा होना समाज में
सम्मानजनक है
पर बेटों के सामने आज भी
बूढ़ा बाप शरमाता है।
उसके जाग जाने के पहले
वह पहुंचा देना चाहता है
सारा सामन
सीढ़ियों पर चढ़ते
लड़खड़ाते हुए कदम
को वह छुपा लेना चाहता है
वह चढ़ता है धीरे-धीरे
मजदूरों के साथ
मजबूर होता हुआ
मजदूर और मजबूर बाप के
पसीने के फर्क को समझता हुआ
वह पंहुचा देना चाहता है सबसे बाद में
बहू का श्रृंगारदान
बेटे के जागने के पहले
उसे उसके कमरे में रखकर
आँखों से आंसू नही बहे पसीने को
पोछ कर छिपाने से पहले
अपने अक्स पर ख़ुशी का
पूरा भरोसा
शीशे में देख लेना चाहता है वह बाप।
( अप्रमेय )
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