Powered By Blogger

Friday, April 18, 2014

पूरी दुनिया

पूरी दुनिया
दूरबीन से न दिख सकेगी
पर हम अपने बिस्तर के तकिए पर
सर टिकाए उसे महसूस कर सकते हैं,
सबसे पहले दर्द होगा
आप की पैर की हड्डियों में
जहाँ चीर कर बीच में उनमे
सपाट करते हुए रास्ते खोज कर
तारकोल बिछाए जाएंगे,
सूख रहे फोड़ो की पपड़ी सा गोल चौराहों पर
आप को दिखेंगी रास्तों की दूरी तय करती
टंगी आत्माए !
पूरी दुनिया
कंकरीट के जंगलो की सी  
फ़ैली दिखाई पड़ेगी
जिसमे ज्यादातर आदमी घर खोजते
भटके नज़र आएंगे |
मैं देखना चाहता हूँ और समझना भी
कि आदमी...आदमी है या
अपने आप को सिद्ध करता हुआ कोई मशीन
जिस पर शब्द हो या फिर कोई स्वर
प्रेम हो या कोई जिज्ञासा
सब कागज़ो पर छप के निकल जाएंगे |
(अप्रमेय)




No comments:

Post a Comment