पेड़ तुम पेड़ रहोगे
कब तक ?
आदमी की समझ में
कभी कटते
कभी फुनगते-झरते
तुम्हारा नाम
सिर्फ पेड़ है
एक झोले की तरह
जिसमे से निकाल कर मुहावरे
वह अपने शब्द
सार्थक करता है ,
पेड़ तुम पेड़ न रहो
तभी आदमी
आदमी शब्द के शक्ल को
दुनिया के किताब में
उतार सकेगा ,
सभ्यता की शक्ल को
शब्दों से निकलना होगा
मिटना होगा पेड़। ....
पेड़ तुम पेड़ न रहो
तभी समझी जा सकेगी
फूल सी उगी कविताएँ।
( अप्रमेय )
कब तक ?
आदमी की समझ में
कभी कटते
कभी फुनगते-झरते
तुम्हारा नाम
सिर्फ पेड़ है
एक झोले की तरह
जिसमे से निकाल कर मुहावरे
वह अपने शब्द
सार्थक करता है ,
पेड़ तुम पेड़ न रहो
तभी आदमी
आदमी शब्द के शक्ल को
दुनिया के किताब में
उतार सकेगा ,
सभ्यता की शक्ल को
शब्दों से निकलना होगा
मिटना होगा पेड़। ....
पेड़ तुम पेड़ न रहो
तभी समझी जा सकेगी
फूल सी उगी कविताएँ।
( अप्रमेय )
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