मैं कोई शब्द
ऐसा नहीं लिख देना चाहता
जो इस सन्नाटे को तोड़े ,
नहीं ! प्रेम नहीं इससे
यह तो सिर्फ इस सन्नाटे को
और गहराने का इंतज़ार है ,
कभी मैं अगर इसमें
कोई सुन सका शब्द
तो उसकी ध्वनि कैसी होगी ?
कभी कोई अगर
देख सका दृष्य
तो उसका रूप कैसा होगा ?
शब्द से परे नहीं
उस गूँज के अंदर
रूप से पार नहीं
उस दृष्य के भीतर
होने की प्रक्रिया में
इंतज़ार के रूपांतरण को
अपने अंदर बुनना चाहता हूँ
हाँ मैं इस इंतज़ार को
और गहरा देना चाहता हूँ।
(अप्रमेय )
ऐसा नहीं लिख देना चाहता
जो इस सन्नाटे को तोड़े ,
नहीं ! प्रेम नहीं इससे
यह तो सिर्फ इस सन्नाटे को
और गहराने का इंतज़ार है ,
कभी मैं अगर इसमें
कोई सुन सका शब्द
तो उसकी ध्वनि कैसी होगी ?
कभी कोई अगर
देख सका दृष्य
तो उसका रूप कैसा होगा ?
शब्द से परे नहीं
उस गूँज के अंदर
रूप से पार नहीं
उस दृष्य के भीतर
होने की प्रक्रिया में
इंतज़ार के रूपांतरण को
अपने अंदर बुनना चाहता हूँ
हाँ मैं इस इंतज़ार को
और गहरा देना चाहता हूँ।
(अप्रमेय )
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