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Friday, June 13, 2014

इस इंतज़ार को

मैं कोई शब्द 
ऐसा नहीं लिख देना चाहता 
जो इस सन्नाटे को तोड़े ,
नहीं ! प्रेम नहीं इससे 
यह तो सिर्फ इस सन्नाटे को 
और गहराने का इंतज़ार है ,
कभी मैं अगर इसमें 
कोई सुन सका शब्द 
तो उसकी ध्वनि कैसी होगी ?
कभी कोई अगर
देख सका दृष्य 
तो उसका रूप कैसा होगा ?
शब्द से परे नहीं 
उस गूँज के अंदर 
रूप से पार नहीं 
उस दृष्य के भीतर 
होने की प्रक्रिया में 
इंतज़ार के रूपांतरण को 
अपने अंदर बुनना चाहता हूँ 
हाँ मैं इस इंतज़ार को 
और गहरा देना चाहता हूँ। 

(अप्रमेय )

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