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Thursday, July 3, 2014

निपट आदमी के लिए

फूल केवल दिखते ही नहीं
वह रंग जाते हैं आप की आँख
स्त्री सिर्फ दिखती ही नहीं
वह दफ्न कर जाती है
तुम्हारे ह्रदय मेंकोई राज
जो नहीं जानते
दुनिया को देखना
वे ही सिर्फ लिखते हैं कविता
गाते हैं गीत या फिर
जिन्हें अपने अन्दर या फिर बाहर
दिखती है कोई फव्वारे की सी तस्वीर
उन्होंने
जो दस्तावेज तैयार किया
वह बंदूख और तलवार
से भी ज्यादे घातक हुए,
समझो मेरे निपट-आदमी !
निपट आदमी के लिए
 
( अप्रमेय )

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