कैसे न हुआ जाए हैरान
वह नहीं पिघलते
और झर जाते हैं झरने
पहाड़ो से नहीं
उसकी आँखों में आ कर,
तुम पोछते नहीं आँसू
और रेगिस्तान
चिपक कर गालों के पास
मेड़ की शक्ल में ढँक जाते हैं कोई राज,
कैसे न हुआ जाए हैरान
वह किनारे हो कर निकल जाते हैं
और धरती के गड्ढे
जमीन पर नहीं
उसकी शक्ल में दे जाते हैं
खाई जैसे निशान,
तुमको दिखती नहीं
पतली होती जाती चमड़ियों पर
कुछ उभरती,दौड़ती तस्वीर
वह केवल शिराएँ नहीं
जीवित शब्द हैं जो रूप के
साथ बह आए हैं नदियों से
शरीर में बसने के लिए |
( अप्रमेय )
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