बीसवी शताब्दी में
दो रुपए के नोट नदारद हैं
घर से ,बाज़ार से
कहीं कोने में दबे
पूजा की किताबों से,
मैंने पूछा और खोजा
बच्चों की गुल्लकों में
दो रुपए का नोट
उन्होंने साफ़ इनकार किया
और औचक होकर
मुझे असभ्यता के
भीड़ में धकेल देना चाहा,
मैंने भिकारियों के
कटोरे में देखा
पूछ न सका
तमाम सिक्कों के बीच
कोई नोट न होने का कारण,
बीसवी शताब्दी के लिए
दो रुपए के नोट की स्वायतता ठीक नहीं
बीसवी शताब्दी का दर्शन में
या तो अद्वैतवाद है या फिर बहुवाद
द्वैतवाद का कोई अर्थ
कभी रहा करता होगा
भारत की चिंतनशील अवस्था में |
(अप्रमेय )
पूजा की किताबों से,
मैंने पूछा और खोजा
बच्चों की गुल्लकों में
दो रुपए का नोट
उन्होंने साफ़ इनकार किया
और औचक होकर
मुझे असभ्यता के
भीड़ में धकेल देना चाहा,
मैंने भिकारियों के
कटोरे में देखा
पूछ न सका
तमाम सिक्कों के बीच
कोई नोट न होने का कारण,
बीसवी शताब्दी के लिए
दो रुपए के नोट की स्वायतता ठीक नहीं
बीसवी शताब्दी का दर्शन में
या तो अद्वैतवाद है या फिर बहुवाद
द्वैतवाद का कोई अर्थ
कभी रहा करता होगा
भारत की चिंतनशील अवस्था में |
(अप्रमेय )
No comments:
Post a Comment