वह प्रार्थना करता है
पुकारता है भगवान् को
गाता है गीत
बजाता है वीणा,वंशी और करताल
सदियों से ,
अपनी समझ से
रचता है वाक्य
करता है प्राण प्रतिष्ठा
जीवन में भाषा की ,
किसी ने अब तक
नहीं देखा ईश्वर को
सदियों से इसे समझता है
कितना असहाय है
और कोई उपाय भी तो नहीं
यह जानता है
शायद इसी लिए
वह ईश्वर को मानता है ।
(अप्रमेय)
पुकारता है भगवान् को
गाता है गीत
बजाता है वीणा,वंशी और करताल
सदियों से ,
अपनी समझ से
रचता है वाक्य
करता है प्राण प्रतिष्ठा
जीवन में भाषा की ,
किसी ने अब तक
नहीं देखा ईश्वर को
सदियों से इसे समझता है
कितना असहाय है
और कोई उपाय भी तो नहीं
यह जानता है
शायद इसी लिए
वह ईश्वर को मानता है ।
(अप्रमेय)
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