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Thursday, June 1, 2017

सत्रह साल पहले

पहले सन्नाटों के बीच 
सुनाई पड़ती थी
झींगुरों की आवाज 
आज उस आवाज के पीछे
सुनाई पड़ा सन्नाटा,
सत्रह साल पहले
तुम्हे पा लेने की ललक थी
और आज तुम्हारी खबर
काफी होती है
जीने भर के लिए
मैंने सत्रह साल पहले
पूछना चाहा था सवाल
चाँद-तारों के बारे में
आज दिखा अँधेरा
उनके पिछवाड़े से
कुछ न बताते हुए
सत्रह साल पहले
तुमने नहीं पुकारा मेरा नाम
जाने क्यों चलते-चलते
रास्ते पर लिखने का मन हुआ
आज तुम्हारा नाम ।
(अप्रमेय)

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