कॉपी किसी की भी
हो सकती है
जिसपर तुम्हारा स्मरण
किसी और का नहीं पर
अपने-अपनों को याद करते
उनके हिस्से का हो सकता है,
स्मृतियाँ अक्षरों में काश
ला पाती तुम्हारी तस्वीर
तो एक-एक शब्द
कैसे उभर आते
अपनी-अपनी जगह
अपना-अपना रूप लिए,
मैं सोचता हूँ ऐसे में तुम्हारे लिए
कि इस पन्ने पर कहाँ लिखूं जंगल
जिस पर हरे-हरे पत्तों और
डंठलों के बीच बिठाऊं
रंग-बिरंगी चिड़िया,
दूर नीले आकाश के नीचे
अपने हाथों को उठाये पहाड़
जैसे न्योता दे रहे हों हमें
ढिंग अपने पास बैठने के लिए,
लिख दूँ दूब कि
कुछ नरम हो जाएँ अक्षर
जो सहलाएं तुम्हारे पाँव,
झरने और तुम्हारे खुले बाल
शब्दों में पानी सा कुछ
ऐसे घुल-मिल जाएँ कि
स्वर और ताल के संतुलन से
शब्द में से कुछ बहें राग,
पन्नों और शब्दों के बीच
काश कोई खिड़की होती
जहाँ से अगर तुम
निहार रहे होते यह पुण्य स्मरण
तो मैं तुम्हे पुकारता और
तुम जहाँ भी जाना चाहते
तुम्हे ले जाता |
(अप्रमेय )
हो सकती है
जिसपर तुम्हारा स्मरण
किसी और का नहीं पर
अपने-अपनों को याद करते
उनके हिस्से का हो सकता है,
स्मृतियाँ अक्षरों में काश
ला पाती तुम्हारी तस्वीर
तो एक-एक शब्द
कैसे उभर आते
अपनी-अपनी जगह
अपना-अपना रूप लिए,
मैं सोचता हूँ ऐसे में तुम्हारे लिए
कि इस पन्ने पर कहाँ लिखूं जंगल
जिस पर हरे-हरे पत्तों और
डंठलों के बीच बिठाऊं
रंग-बिरंगी चिड़िया,
दूर नीले आकाश के नीचे
अपने हाथों को उठाये पहाड़
जैसे न्योता दे रहे हों हमें
ढिंग अपने पास बैठने के लिए,
लिख दूँ दूब कि
कुछ नरम हो जाएँ अक्षर
जो सहलाएं तुम्हारे पाँव,
झरने और तुम्हारे खुले बाल
शब्दों में पानी सा कुछ
ऐसे घुल-मिल जाएँ कि
स्वर और ताल के संतुलन से
शब्द में से कुछ बहें राग,
पन्नों और शब्दों के बीच
काश कोई खिड़की होती
जहाँ से अगर तुम
निहार रहे होते यह पुण्य स्मरण
तो मैं तुम्हे पुकारता और
तुम जहाँ भी जाना चाहते
तुम्हे ले जाता |
(अप्रमेय )
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