यहाँ बैठ कर
तुम्हारा खयाल
बेसुरे मंगलाचरण
और पंखों के बीच फड़फड़ाती
अब बुझी कि तब मंगलदीप लौ
से ज्यादा कुछ और नहीं है,
आदमी का होना
दूसरे आदमी के लिए
बस टपक पड़े तोते के
आधा से ज्यादा खाए
आम के पकनारी की तरह है
जिसके गिरने की ख़ुशी
केवल उन गरीब बच्चों को है
जो चूहे को भूज कर
कुछ मीठा खाने के लिए
उन्हें बटोरते हैं,
दुनिया में हसीन सपनों की किताब
किसने सबसे पहले लिखी
यह तो नहीं जानता
पर जिंदगी में दुःख का विस्तार
किसने किया
इसका जवाब सबका ह्रदय
बहुत अच्छे से जानता है ।
(अप्रमेय)
तुम्हारा खयाल
बेसुरे मंगलाचरण
और पंखों के बीच फड़फड़ाती
अब बुझी कि तब मंगलदीप लौ
से ज्यादा कुछ और नहीं है,
आदमी का होना
दूसरे आदमी के लिए
बस टपक पड़े तोते के
आधा से ज्यादा खाए
आम के पकनारी की तरह है
जिसके गिरने की ख़ुशी
केवल उन गरीब बच्चों को है
जो चूहे को भूज कर
कुछ मीठा खाने के लिए
उन्हें बटोरते हैं,
दुनिया में हसीन सपनों की किताब
किसने सबसे पहले लिखी
यह तो नहीं जानता
पर जिंदगी में दुःख का विस्तार
किसने किया
इसका जवाब सबका ह्रदय
बहुत अच्छे से जानता है ।
(अप्रमेय)
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