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Thursday, June 1, 2017

गोजी हुई लकीर

तुम्हारी गोजी हुई लकीर 
मेरी डायरी में 
अचानक दिख पड़ती है 
रात मे अचानक जग जाने जैसे,
रात कभी 
दिन कभी
तुम जब भी दिख पड़ते हो
मेरे पन्नो में
छेड़ जाते को कोई प्यारी धुन,
सन्नाटे में अचानक कभी-कभी
कौंधती है चमक
तुम्हारी गोजी हुई लकीर सी।
तुमने गोजा नहीं था
मेरी डायरी में
गुज गए थे
अपनी पूरी मस्ती लिए
पूरी कहानी लिए
आओ मै तुम्हारे लिए
कोई शब्द तराशूँ !
(अप्रमेय)

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