एक लौ काँपती है
स्मृति में
अँधेरा डोलता है
संग उसके
मैं देखता हूँ
पतंगों की तरह
नाचते एहसास
जिनके पंख पर
काल की घड़ी के
निशान बने हुए हैं...
(अप्रमेय)
स्मृति में
अँधेरा डोलता है
संग उसके
मैं देखता हूँ
पतंगों की तरह
नाचते एहसास
जिनके पंख पर
काल की घड़ी के
निशान बने हुए हैं...
(अप्रमेय)
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