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Monday, April 23, 2018

प्रतीक्षा

मुझे महाप्रलय का इंतज़ार है 
जब देह सहित मैं क्रम से और 
काल से पार हो कर 
मैं वही हो जाऊँगा
जिसके लिए योगी बहुत जल्दी में रहते हैं,
 
मुझे फ़िक्र है तुम्हारी
जो जानते नहीं कि वे क्यों
धूप से अग्नि ले कर और पृथ्वी से
जल लेकर लगातार गलते हुए
खड़े हैं जंगलों में, मैदानों में या फिर कहीं भी
जहाँ वे हमारे लिए स्वांस और छाया का
प्रबंध कर सकें,


मुझे नित्य प्रलय, प्राकृतिक प्रलय में
कोई दिलचस्पी नहीं
मुझे प्रतीक्षा में सुख मिलता है
क्योंकि मैं रचता हूँ वहां अपने अंदर एक सृष्टि
जो महाप्रलय के दिन
बगावत करेगी उससे जो एक मात्र
मेरे सामने खड़ा होगा
(अप्रमेय)

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