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Monday, April 23, 2018

ईश्वर की लोरी

कुछ भी हो सकता है यहाँ
तुम देखो तो 
आकाश उतर कर चला आता रहा सदियों से 
तालाब के अंदर,
तुमने पहचाना नहीं पेड़ों का 
धीरे-धीरे झूलना उसी
तालाब के अंदर
उसी तालाब में
दर्पण की तरह
उतर आई कितनी बार
तस्वीर तुम्हारी
कितनी बार मन तुम्हारा
तालाब की लहरों में
आगे और आगे की तरफ बढ़ता हुआ
हो गया क्षितिज के पार,
तुम्हे पता नहीं !!!
जाने कितनी बार
उसी तालाब में
तुमने अपने पाँव डालकर
जाने कितनी बार सुनी
बिना स्वर के
ईश्वर की लोरी.....
(अप्रमेय)

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