स्मृति में कोई शक्ल
तालाब के जल में पड़ी परछाईं सा
झिलमिलाती है,
दूर से कोई चुप सी आवाज
जंगल में गुम होती सी मेरे कानों में
गुनुनाती है,
मैं रोक नहीं सकता
समय चक्र नहीं तो
झिलमिलाती शक्ल और
गुनगुनाती आवाज को
दे देता अपने शब्द
जो जीवित हो कर
बन जाते
मेरा मंत्र.
(अप्रमेय)
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