मैंने आंख समेट कर
जब अपनी तलाशी ली तब
समझ पाया कि इस साल
तुम्हारी याद जो मेरे पेट में
अपना घोंसला बनाए हुए है
वह किसी तूफान का संकेत है,
पिछले साल न तूफान था और
न ही कोई जलजला इसलिए
तुमने ठीक मेरे माथे के बीचों-बीच
अपना घोंसला बनाया था और तब
तुम्हें ठीक से मैं देख पाया था
अपनी कविताओं को
ठीक तुम्हारे घोंसले की तरह
स्वरों से बुन पाया था,
माथे और पेट के घोंसले का
सिलसिला तो चलता रहा पर
इधर बार-बार
आंखें सिमट जाती हैं
हृदय के बीचों-बीच
किसी डाल पर अटक जाती हैं
घोंसला वहां अब बनना ही चाहिए
इस प्रार्थना के साथ
आंखें बंद बंद और फिर
बंद हो जाती हैं।
(अप्रमेय)
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