सतपुड़ा के जंगल से गुजरते हुए
मुझे ख्याल हो आया
पेड़ों की गठान
और उनकीे हस्तरेखा सी
खींची हुई टहनियां,
आदमी जितने होंगे
उतने ही खाली दिखेंगे
पत्तों से पेड़,
पेड़ आदमी के जीवन के फलादेश हैं
जिनके पत्तों जैसे शब्द
आदमी पर लगे श्राप को
सोखते हुए सूखते हैं और समय से पहले
मिट्टी में गुम हो जाते हैं।
(अप्रमेय)
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