इन पहाड़ों-जंगलों के बीच पतली पतली रेखाओं सा किसने गढ़ा मार्ग!!! किससे पूंछू इस वीराने में??? और सहसा पत्तों सा सरसराता है स्मरण में कोई गीत उत्तर मौन में उतर आता है फिर लोक हृदय में प्राण-प्रतिष्ठित हो कर शिवलिंग सा ठहर जाता है। (अप्रमेय)
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