पागलपन
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इधर बहुत दिनों से
चिड़ियों ने मेरी खिड़की के पास
आवाज नहीं लगाई,
पीपल के पत्ते उड़ कर
नहीं लाए कोई संदेसा
मेरे दरवाजे के पास,
इस बरसात झिंगरो और मेढकों ने भी
नहीं सुनाई कजरी,
आकाश ने भी गरज कर
कोई डांट नहीं लगाई,
इस वसंत फूल तो खिले
पर किसी ने इत्र का छिड़काव
नहीं किया मुझपर,
और इस होली पलाश भी
उतरा नहीं मेरे माथे पर
अबीर लगाने,
मैं सोचता हूँ और चुप
हो जाता हूँ, फिर
धन्यवाद देता हूँ कविता को
कि किसी से कुछ कहने के बजाए
कुछ लिख देना कैसे
औषधि बन जाता है
पागलपन से बचने के लिए।
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(अप्रमेय)