हाइवे पर सन्यासी
------------------------
गांव के चबूतरे पर
खलिहान के बीच
कहीं पेड़ की छांव में
या शहर के चौराहों, गलियों
के बीच से गुजरता हुआ सन्यासी
कहीं भी दिख जाता है।
सन्यासी कहता नहीं कुछ
आदमी ने कहा है हमेशा
उसके बारे में,
पहाड़, गुफा, चमत्कार
माला, चंदन, खड़ाऊं
जाने कितने प्रतीक चिपके हैं
उसके साथ,
मैं जानना चाहता हूँ इन प्रतीकों
का भाग्य उन्हीं की जुबानी
जो उसके साथ डोल रहें हैं
सदियों से इधर से उधर पर
वे भी सन्यासी की ही तरह
कुछ बोलते दिखते नहीं,
अभी तेज दौड़ती रफ्तार के बीच
हाइवे पर चल रहा है सन्यासी
हाइवे ने पूछा नहीं और
सन्यासी ने भी शायद बताया नहीं,
बिना उसे बताए और खुद भी बिना जाने
मैं सोच रहा हूँ
जा कहाँ रहा है सन्यासी ?
---------------------------
(अप्रमेय)
No comments:
Post a Comment