उदास हो जाता हूँ
-----------------------------------------------------.
यहीं पास में तना है बादल
यहीं बाहर खिड़की से
बह रही हवा,
यहीं उतर आएगी रात चाँदनी
यहीं सुबह से बाहर झबराये पेड़ से
पुकारेगी कोयल,
यहीं से हां यहीं से
देखते देखते
धीरे-धीरे हम हो जाएंगे बिदा,
किताबें कहती हैं
कुछ खत्म नहीं होता
मैं जानता हूँ यह वाक्य
समूची सृष्टि का
सबसे भ्रांत वाक्य है
इसलिए
कविता में इसे नारे की तरह दोहराता हूँ
कि अपने आप को धीरे धीरे
खत्म होता हुआ देख
उदास हो जाता हूँ!!!
-------------------------------------------------------
अप्रमेय
No comments:
Post a Comment