जीवन वृत मेरा
लिखा नहीं जा सकता
इसलिए नहीं कि ये मुमकिन नहीं
इसलिए कि मैं जानता हूँ
लिखने को कुछ उसमें होगा नहीं,
मैंने इत्मीनान से इसपर सोचा
और चुप चाप खुद से
कुछ कहते रहने का
निर्णय लिया !!!
यह निर्णय ब्रह्म वाक्य है
दुनिया के लिए नहीं
मेरे लिए क्यों कि
यह मेरा सत्य है
जिसमें पाप, ईर्ष्या, मक्कारी
और वह सब कुछ जिसे
आप घृणित कहते हैं
कम-जरा नहीं कूट-कूट कर
भरा पड़ा है
मैं जानता हूँ यह कि इसके नाते
मेरा मंसूर की तर्ज पर
कत्ल किया जा सकता है
पर मैं यह भी जानता हूँ
कि मैं मंसूर नहीं।
(अप्रमेय)
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