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Friday, February 7, 2020

समझ सको तो कविता नहीं तो अंगारा

झोपड़ी नाँव और साधू
हमेशा वीराने में होते हैं
इस बात को कहते हुए
बस एक सुधार करना चाहता हूं
झोपड़ी अब शहर के बीचो-बीच
सियासत की मुकुट होटीे है,
इसे तुम अगर समझ सको तो
यह एक कविता है
नहीं तो आग उगलती अंगारा।
(अप्रमेय)

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