मेरे लौटने के बाद
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तुम्हारे पास से
लौटते हुए मुट्ठी बांधे
मैं ले आता हूँ शब्द
कागजों में उन्हें पुड़ियाते
और भागते हुए जंगलों की तरफ
इधर मैंने धीरे धीरे जाना
ध्वनि का गर्भ
तुम्हारे पास से लौटते हुए मैंने सीखा
शहर की आबादी से कैसे
निकाल ले आने हैं
कुछ अनाथ शब्द
मैं इधर अब उन्हीं अनाथ शब्दों की
तलाश में रहता हूँ
और मरघट के दरवाजे पर
धीरे-धीरे सरकते उन शब्दों को
भर-भर के ले जाता हूँ
जंगलों की तरफ,
पाठकों से बात दूं
कि जंगलों का व्याकरण अलग है
और कविता तो बिलकुल ही है अलग
मैं शब्दों से कविता का
घोंसला बुनता हूँ जिसमें
जन्म पाती है भाव की एक चिड़िया
जो मेरे शहर लौटने के बाद
मुक्त आकाश में उड़ जाती है
उसका गुण-धर्म बन जाती है।
(अप्रमेय)
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